चंडीगड़ (द पंजाब प्लस) पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए बालिग अविवाहित बेटियों के हक में बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि अब ऐसी बेटियां भी अपने माता-पिता से भरण-पोषण (मैंटेनेंस) की मांग कर सकती हैं। यह फैसला भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के दायरे को विस्तार देने के रूप में देखा जा रहा है।
अब तक की स्थिति यह थी कि कोई बेटी केवल तभी भरण-पोषण की हकदार मानी जाती थी, जब वह नाबालिग हो या मानसिक/शारीरिक रूप से अक्षम हो। जैसे ही वह 18 साल की होती, उसका यह अधिकार खत्म हो जाता, खासकर अगर मामला साधारण न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास की अदालत में चल रहा हो।
लेकिन अब हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि यदि बालिग बेटी अविवाहित है और आत्मनिर्भर नहीं है, तो वह भी अपने माता-पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है।
इस फैसले को महिला अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे उन बेटियों को राहत मिलेगी, जो उच्च शिक्षा या अन्य कारणों से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो पातीं।
हाईकोर्ट के इस फैसले के अनुसार, यदि मामला किसी फैमिली कोर्ट में चल रहा हो, जो कि फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 के तहत स्थापित की गई हो, तो वहां अविवाहित बालिग बेटी भी धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है। यह फैसला ऐसे परिवार कानूनों के अंतर्गत आने वाले विवादों में एक बड़ी राहत की तरह देखा जा रहा है।
फैसले में जस्टिस जसप्रीत सिंह पुरी ने कहा कि: “यदि अविवाहित बालिग बेटी न तो शादीशुदा है और न ही आत्मनिर्भर, तो उसे अपने पिता से तब तक भरण-पोषण मिलना चाहिए जब तक वह विवाह न कर ले या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न हो जाए। फैमिली कोर्ट, जहां वैयक्तिक कानून भी प्रभावी होते हैं, ऐसी याचिकाओं पर फैसला कर सकती है।”
जानें किस केस में कोर्ट ने लिया फैसला
यह फैसला गुरदासपुर की दो बहनों द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने अपने पिता के खिलाफ भरण-पोषण की राशि बढ़ाने की मांग की थी।
याचिका के अनुसार, पहले याचिका न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास के समक्ष दायर की गई थी, जहां इसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि बेटी बालिग हो चुकी है और इसलिए अब धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है। लेकिन जब यह याचिका फैमिली कोर्ट में पेश की गई, तो उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि फैमिली कोर्ट इस पर निर्णय देने के लिए सक्षम है।
क्यों है यह फैसला अहम?
- कानूनी स्पष्टीकरण: यह स्पष्ट करता है कि भरण-पोषण के अधिकार केवल नाबालिग बेटियों तक सीमित नहीं हैं, यदि याचिका फैमिली कोर्ट में प्रस्तुत हो।
- वैयक्तिक कानूनों का समावेश: फैमिली कोर्ट अब वैयक्तिक कानूनों (जैसे कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम) और CrPC दोनों के तहत ऐसे मामलों पर सुनवाई कर सकती है।
- विधिक समानता की दिशा में कदम: यह फैसला लैंगिक और पारिवारिक अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
अविवाहित बेटियों के लिए राहत
हाईकोर्ट का यह निर्णय उन अविवाहित बालिग बेटियों के लिए बड़ी राहत है, जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं लेकिन कानूनन अब उन्हें माता-पिता से सहायता मांगने का अधिकार मिल गया है, बशर्ते वे फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करें। यह फैसला आने वाले समय में ऐसे कई मामलों की दिशा तय करेगा और सामाजिक न्याय की भावना को और मजबूत करेगा।

