जालंधर (दीपक पंडित) भारतीय संस्कृति में दान को जीवन का सर्वश्रेष्ठ कर्म बताया गया है। ऐसा दान जिससे किसी का जीवन बच जाए, उसे सबसे बड़ा दान कहना गलत नहीं होगा। इसीलिए रक्तदान को जीवन का सबसे बड़ा दान कहा गया है। वीरवार को एक 85 वर्षीय महिला को बी-नेगेटिव ब्लड चाहिए था। जोकि पूरे शहर में नहीं मिला तो जालंधर डीसी विशेष सारंगल खुद खून देने के लिए अस्पताल पहुंच गए। जिससे उक्त महिला की जान बच गई।
महिला श्री गुरू रविदास चौक के नजदीक घई अस्पताल में दाखिल थी, जिसे इंटर्नल ब्लीडिंग के चलते बी-नेगेटिव ब्लड चाहिए था। यह ब्लड नार्थ इंडिया में काफी काम पाया जाता है। पूरे शहर में काफी देर से उक्त ब्लड ग्रुप का यूनिट तलाशा जा रहा था। मगर नहीं मिला, जब बात डीसी तक पहुंच गई। जिसके बाद डीसी ब्लड देने पहुंचे।
अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेडेंट डॉ. एचएस भुटानी ने बताया कि करीब तीन महीने पहले हमने ब्लड कैंप लगाया था। जिसमें डीसी विशेष सारंगल ने भी ब्लड डोनेट किया था। उन्होंने इच्छा जाहर की थी कि अगर भविष्य में भी किसी पेशेंट को बी-नेगेटिव ब्लड की जरूरत होगी तो वह जरूर डोनेट करेंगे।
बीते दिनों उनके अस्पताल में शहर की रहने वाली बुजुर्ग महिला दाखिल हुई। करीब 85 वर्षीय महिला को इंटर्नल जीए ब्लीडिंग हुई। पेशेंट में महज 6 ग्राम खून रह गया था। सबसे जरुरी था उन्हें ब्लड चढ़ाया जाए।
तीन-चार ब्लड बैंक से बी-नेगेटिव ब्लड के बारे में पूछा तो कहीं से अरेंज नहीं हुआ। फिर डीसी विशेष सारंगल से फोन पर बात कर सारी जानकारी दी गई। जिससे बाद दोपहर करीब 1 बजे डीसी ब्लड देने पहुंचे। जहां ब्लड देने के बाद वह तुरंत अपनी मीटिंग के लिए निकल गए। जिससे महिला की जान बच गई।