ढाका/नई दिल्ली (द पंजाब प्लस) बीते दिनों बंगलादेश सरकार की ओर से कट्टरपंथी दल जमात-ए-इस्लामी पर लगाए गए बैन के कारण ही छात्रों का यह प्रदर्शन हिंसा में बदल गया। दरअसल शेख हसीना सरकार ने हाल ही में जमात-एइस्लामी, इसकी छात्र शाखा और इससे जुड़े अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह कदम बंगलादेश में कई सप्ताह तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया था। कहा जा रहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के बाद ये संगठन शेख हसीना सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।
सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगाते हुए कट्टरपंथी पार्टी पर आंदोलन का फायदा उठाने और लोगों को हिंसा के लिए बरगलाने का आरोप लगाया था। जमातए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14 पार्टियों के गठबंधन की मीटिंग में लिया गया था। इस मीटिंग के दौरान कथित रूप से सहयोगी पार्टियों ने भी कट्टर पार्टी पर बैन लगाने की अपील की थी। जमात-ए-इस्लामी एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे बंगलादेश में कट्टरपंथी माना जाता है।
यह राजनीतिक पार्टी पूर्व पीएम खालिदा जिया की समर्थक पार्टियों में शामिल है। जमात पर प्रतिबंध लगाने का हालिया निर्णय 1972 में ‘राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का दुरुपयोग’ के लिए प्रारंभिक प्रतिबंध के 50 साल बाद लिया गया है। जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत में हुई थी। 2018 में बंगलादेश हाईकोर्ट के फैसले का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था। इसके बाद जमात चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी।
बता दें कि जमात-एइस्लामी का बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हमला करने में भी नाम आता रहा है। मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जमात-ए-इस्लामी और छात्र शिविर लगातार बंगलादेश में हिन्दुओं को निशाना बनाते रहे हैं। बंगलादेश में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों का आकलन है कि साल 2013 से 2022 तक बंगलादेश में हिन्दुओं पर 3600 हमले हुए हैं। इसमें जमात-एइस्लामी का कई घटनाओं में रोल रहा है।