चंडीगड़ (द पंजाब प्लस) शिरोमणि अकाली दल (SAD) चार सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव नहीं लड़ेगा। यह फैसला आज पार्टी की वर्किंग कमेटी और जिला प्रधानों की मीटिंग में लिया गया है। करीब दो घंटे तक चली मीटिंग में इस मुद्दे पर मंथन चला, जिसके बाद यह फैसला हुआ है। पार्टी के सीनियर नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी है। हालांकि एसजीपीसी के प्रधान पद चुनाव में पार्टी शामिल होगी।
उन्होंने कहा कि हम श्री अकाल तख्त साहिब के आदेश का हमेशा पालन करते हैं। 30 अगस्त प्रधान को तनखैया घोषित किया गया। 31 तारीख को वह अकाल तख्त साहिब पर हाजिर हो गए थे। लेकिन समय काफी निकल गया था। कई बार सिंह साहिब को बेनती की गई फैसला सुनाया जाए। लेकिन अब चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है। लोग चाहते थे कि गिद्दड़बाहा हलके से प्रधान सुखबीर बादल चुनाव लड़े। लेकिन जैसे ही कल जत्थेदार साहिब का आदेश आया है उससे साफ है कि वह चुनाव प्रचार नहीं कर सकते हैं। सारी पार्टी ने फैसला लिया है कि हम श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले से बाहर नहीं जाएंगे। इस दौरान चुनाव से बाहर रहने का फैसला लिया है।
इससे पहले मीटिंग की अध्यक्षता कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ ने की। जिसमें हर मेंबर से राय ली गई। वहीं, चुनाव लड़ने का प्रस्ताव पास किया। यह फैसला उस समय लिया गया है जब पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब ने तनखैया घोषित कर रखा है। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह का पहले ही साफ कर चुके है कि तनखैया तब तक तनखैया ही रहता है, जब तक उसकी तनखा पूरा नहीं हो जाती है। उसकी सजा के बारे में फैसला दिवाली के बाद लिया जाएगा।
ऐसे में साफ है कि सुखबीर बादल चुनाव प्रचार नहीं कर सकते है और न ही चुनाव लड़ सकते हैं।मीटिंग से पहले अकाली नेता विरनजीत सिंह गोल्डी का कहना है कि अगर सुखबीर सिंह बादल को प्रचार का हक नहीं होगा। तो हम इलाके में कैसे जाएंगे। ऐसे में मैं तो यहीं कहूंगा कि इस स्थिति में चुनाव में नहीं जाना चाहिए।
1992 में पंजाब विधानसभा चुनाव के समय शिरोमणि अकाली दल ने चुनाव से बायकाॅट किया था। इस दौरान बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने थे। जबकि जब 1995 में गिद्दड़बाहा के उपचुनाव आए तो वहां से मनप्रीत सिंह बादल ने चुनाव लड़ा और जीता था। इसके बाद 1997 में शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई थी।
इसके बाद यह पहला मौका है, जब अकाली दल ने चुनाव पीछे हटने का फैसला लिया है। यह पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टियों में शामिल है। हालांकि 2017 से यह पार्टी सत्ता से बाहर है। हालांकि उससे 10 साल पहले वह सत्ता में रही है। 117 विधायकों वाली पंजाब विधानसभा में तीन विधायक रह गए हैं। वहीं, उनमें से एक विधायक आप में शामिल हो चुके हैं। वहीं, लोकसभा चुनाव में पार्टी मात्र एक ही सीट जीत पाई है। साथ ही वोट बैंक के मामले में पार्टी चौथे स्थान पर पहुंच गई है।